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− | '''تمہید زمینی آشکارا می شود روح حضرت رومی'''
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− | تمہید زمینی آشکارا می شود روح حضرت رومی و شرح
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− | میدہد اسرار معراج را
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− | عشق شور انگیز بے پروای شہر
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− | شعلۂ او میرد از غوغای شہر
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− | خلوتے جوید بدشت و کوہسار
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− | یا لب دریای ناپیدا کنار
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− | من کہ در یاران ندیدم محرمی
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− | بر لب دریا بیاسودم دمی
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− | بحر و ہنگام غروب آفتاب
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− | نیلگون آب از شفق لعل مذاب
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− | کور را ذوق نظر بخشد غروب
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− | شام را رنگ سحر بخشد غروب
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− | با دل خود گفتگوہا داشتم
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− | آرزوہا جستجوہا داشتم
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− | آنے و از جاودانی بے نصیب
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− | زندہ و از زندگانی بے نصیب
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− | تشنہ و دور از کنار چشمہ سار
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− | می سرودم این غزل بے اختیار
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− | '''غزل'''
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− | بگشای لب کہ قند فراوانم آرزوست
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− | بنمای رخ کہ باغ و گلستانم آرزوست
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− | یک دست جام بادہ و یک دست زلف یار
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− | رقصی چنین میانۂ میدانم آرزوست
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− | گفتی ز ناز بیش مرنجان مرا، برو
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− | آن گفتنت کہ بیش مرنجانم آرزوست
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− | اے عقل تو ز شوق پراکندہ گوی شو
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− | اے عشق نکتہ ہای پریشانم آرزوست
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− | این آب و نان چرخ چو سیل است بیوفا
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− | من ماہیم نہنگم و عمانم آرزوست
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− | جانم ملول گشت ز فرعون و ظلم او
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− | آن نور جیب موسی عمرانم آرزوست
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− | دی شیخ با چراغ ہمی گشت گرد شہر
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− | کز دیو و دد ملولم و انسانم آرزوست
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− | زین ہمرہان سست عناصر دلم گرفت
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− | شیر خدا و رستم دستانم آرزوست
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− | گفتم کہ یافت می نشود جستہ ایم
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− | گفت آنکہ یافت می نشود آنم آرزوست
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− | '''رومی'''
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− | موج مضطر خفت بر سنجاب آب
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− | شد افق تار از زیان آفتاب
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− | از متاعش پارہ ئی دزدید شام
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− | کوکبی چون شاہدی بالای بام
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− | روح رومے پردہ ہا را بر درید
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− | از پس کہ پارہ ئی آمد پدید
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− | طلعتش رخشندہ مثل آفتاب
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− | شیب او فرخندہ چون عہد شباب
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− | پیکری روشن ز نور سرمدی
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− | در سراپایش سرور سرمدی
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− | بر لب او سر پنھان وجود
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− | بند ہای حرف و صوت از خود گشود
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− | حرف او آئینہ ئی آویختہ
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− | علم با سوز درون آمیختہ
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− | گفتمش موجود و ناموجود چیست
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− | معنی محمود و نامحمود چیست
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− | گفت موجود آنکہ می خواہد نمود
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− | آشکارائی تقاضای وجود
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− | زندگی خود را بخویش آراستن
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− | بر وجود خود شہادت خواستن
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− | انجمن روز الست آراستند
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− | بر وجود خود شہادت خواستند
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− | زندہ ئی یا مردہ ئی یا جان بلب
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− | از سہ شاہد کن شہادت را طلب
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− | شاہد اول شعور خویشتن
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− | خویش را دیدن بنور خویشتن
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− | شاہد ثانے شعور دیگری
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− | خویش را دیدن بنور دیگری
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− | شاہد ثالث شعور ذات حق
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− | خویش را دیدن بنور ذات حق
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− | پیش این نور ار بمانی استوار
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− | حی و قائم چون خدا خود را شمار
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− | بر مقام خود رسیدن زندگی است
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− | ذات را بے پردہ دیدن زندگی است
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− | مرد مومن در نسازد با صفات
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− | مصطفی راضی نشد الا بہ ذات
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− | چیست معراج آرزوی شاہدی
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− | امتحانی روبروی شاہدی
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− | شاہد عادل کہ بے تصدیق او
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− | زندگی ما را چو گل را رنگ و بو
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− | در حضورش کس نماند استوار
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− | ور بماند ہست او کامل عیار
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− | ذرہ ئی از کف مدہ تابی کہ ہست
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− | پختہ گیر اندر گرہ تابی کہ ہست
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− | تاب خود را بر فزودن خوشتر است
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− | پیش خورشید آزمودن خوشتر است
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− | پیکر فرسودہ را دیگر تراش
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− | امتحان خویش کن موجود باش
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− | این چنین موجود محمود است و بس
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− | ورنہ نار زندگی دود است و بس
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− | باز گفتم پیش حق رفتن چسان
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− | کوہ خاک و آب را گفتن چسان
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− | آمر و خالق برون از امر و خلق
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− | ما ز شست روزگاران خستہ حلق
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− | گفت اگر سلطان ترا آید بدست
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− | می توان افلاک را از ہم شکست
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− | باش تا عریان شود این کائنات
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− | شوید از دامان خود گرد جہات
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− | در وجود او نہ کم بینی نہ بیش
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− | خویش را بینی ازو، او را ز خویش
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− | نکتۂ "الا بسلطان" یاد گیر
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− | ورنہ چون مور و ملخ در گل بمیر
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− | از طریق زادن اے مرد نکو
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− | آمدی اندر جھان چار سو
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− | ہم برون جستن بزادن میتوان
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− | بندہا از خود گشادن میتوان
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− | لیکن این زادن نہ از آب و گل است
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− | داند آن مردی کہ او صاحبدل است
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− | آن ز مجبوری است، این از اختیار
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− | آن نھان در پردہ ہا این آشکار
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− | آن یکی با گریہ، این با خندہ ایست
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− | یعنی آن جویندہ، این یابندہ ایست
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− | آن سکون و سیر اندر کائنات
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− | این سراپا سیر بیرون از جہات
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− | آن یکی محتاج روز و شب است
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− | وان دگر روز و شب او را مرکب است
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− | زادن طفل از شکست اشکم است
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− | زادن مرد از شکست عالم است
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− | ہر دو زادن را دلیل آمد اذان
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− | آن بلب گویند و این از عین جان
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− | جان بیداری چو زاید در بدن
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− | لرزہ ہا افتد درین دیر کہن"
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− | گفتم این زادن نمیدانم کہ چیست
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− | گفت شأنی از شون زندگی است
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− | شیوہ ہای زندگی غیب و حضور
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− | آن یکی اندر ثبات آن در مرور
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− | گہ بجلوت می گدازد خویش را
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− | گہ بخلوت جمع سازد خویش را
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− | جلوت او روشن از نور صفات
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− | خلوت او مستنیر از نور ذات
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− | عقل او را سوی جلوت می کشد
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− | عشق او را سوی خلوت می کشد
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− | عقل ھم خود را بدین عالم زند
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− | تا طلسم آب و گل را بشکند
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− | می شود ہر سنگ رہ او را ادیب
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− | می شود برق و سحاب او را خطیب
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− | چشمش از ذوق نگہ بیگانہ نیست
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− | لیکن او را جرأت رندانہ نیست
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− | پس ز ترس راہ چون کوری رود
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− | نرم نرمک صورت موری رود
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− | تا خرد پیچیدہ تر بر رنگ و بوست
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− | میرود آہستہ اندر راہ دوست
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− | کارش از تدریج می یابد نظام
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− | من ندانم کی شود کارش تمام
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− | می نداند عشق سال و ماہ را
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− | دیر و زود و نزد و دور راہ را
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− | عقل در کوہی شکافی میکند
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− | یا بگرد او طوافے می کند
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− | کوہ پیش عشق چون کاہی بود
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− | دل سریع السیر چون ماہی بود
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− | عشق، شبخونی زدن بر لامکان
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− | گور را نادیدہ رفتن از جھان
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− | زور عشق از باد و خاک و آب نیست
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− | قوتش از سختی اعصاب نیست
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− | عشق با نان جوین خیبر گشاد
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− | عشق در اندام مہ چاکی نہاد
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− | کلہ نمرود بے ضربی شکست
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− | لشکر فرعون بے حربی شکست
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− | عشق در جان چون بچشم اندر نظر
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− | ہم درون خانہ ھم بیرون در
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− | عشق ہم خاکستر و ہم اخگر است
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− | کار او از دین و دانش برتر است
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− | عشق سلطان است و برہان مبین
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− | ہر دو عالم عشق را زیر نگین
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− | لا زمان و دوش فردائی ازو
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− | لامکان و زیر و بالائے ازو
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− | چون خودی را از خدا طالب شود
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− | جملہ عالم مرکب او راکب شود
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− | آشکارا تر مقام دل ازو
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− | جذب این دیر کہن باطل ازو
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− | عاشقان خود را بہ یزدان میدہند
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− | عقل تأویلی بہ قربان میدہند
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− | عاشقی از سو بہ بے سوئی خرام
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− | مرگ را بر خویشتن گردان حرام
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− | اے مثال مردہ در صندوق گور
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− | می توان برخاستن بے بانگ صور
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− | در گلو داری نواہا خوب و نغز
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− | چند اندر گل بنالی مثل چغز
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− | بر مکان و بر زمان اسوار شو
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− | فارغ از پیچاک این زنار شو
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− | تیز تر کن این دو چشم و این دو گوش
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− | ہر چہ می بینی نیوش از راہ ہوش
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− | آن کسی کو بانگ موران بشنود
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− | ہم ز دوران سر دوران بشنود
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− | آن نگاہ پردہ سوز از من بگیر
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− | کو بچشم اندر نمیگردد اسیر
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− | "آدمی دید است باقی پوست است
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− | دید آن باشد کہ دید دوست است
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− | جملہ تن را در گداز اندر بصر
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− | در نظر رو، در نظر رو، در نظر"
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− | '''رومی'''
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− | تو ازین نہ آسمان ترسی، مترس
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− | از فراخای جہان ترسی مترس
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− | چشم بگشا بر زمان و بر مکان
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− | این دو یک حال است از احوال جان
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− | تا نگہ از جلوہ پیش افتادہ است
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− | اختلاف دوش و فردا زادہ است
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− | دانہ اندر گل بہ ظلمت خانہ ئی
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− | از فضای آسمان بیگانہ ئی
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− | ہیچ میداند کہ در جای فراخ
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− | می توان خود را نمودن شاخ شاخ
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− | جوہر او چیست یک ذوق نموست
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− | ہم مقام اوست این جوہر ہم اوست
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− | ایکہ گوئی محمل جان است تن
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− | سر جان را در نگر بر تن متن
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− | محملی نی، حالی از احوال اوست
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− | محملش خواندن فریب گفتگوست
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− | چیست جان جذب و سرور و سوز و درد
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− | ذوق تسخیر سپہر گرد گرد
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− | چیست تن با رنگ و بو خو کردن است
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− | با مقام چار سو خو کردن است
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− | از شعور است این کہ گوئی نزد و دور
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− | چیست معراج ؟ انقلاب اندر شعور
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− | انقلاب اندر شعور از جذب و شوق
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− | وارہاند جذب و شوق از تحت و فوق
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− | این بدن با جان ما انباز نیست
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− | مشت خاکی مانع پرواز نیست"
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