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− | '''خطاب بہ مہر عالمتاب
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− | اے امیر خاور اے مہر منیر
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− | می کنی ہر ذرہ را روشن ضمیر
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− | از تو این سوز و سرور اندر وجود
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− | از تو ہر پوشیدہ را ذوق نمود
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− | می رود روشنتر از دست کلیم
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− | زورق زرین تو در جوی سیم
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− | پرتو تو ماہ را مہتاب داد
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− | لعل را اندر دل سنگ آب داد
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− | لالہ را سوز درون از فیض تست
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− | در رگ او موج خون از فیض تست
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− | نرگسان صد پردہ را بر می درد
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− | تا نصیبی از شعاع تو برد
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− | خوش بیا صبح مراد آوردہ ئی
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− | ہر شجر را نخل سینا کردہ ئی
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− | تو فروغ صبح و من پایان روز
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− | در ضمیر من چراغی بر فروز
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− | تیرہ خاکم را سراپا نور کن
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− | در تجلی ہای خود مستور کن
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− | تا بروز آرم شب افکار شرق
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− | بر فروزم سینۂ احرار شرق
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− | از نوائی پختہ سازم خام را
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− | گردش دیگر دہم ایام را
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− | فکر شرق آزاد گردد از فرنگ
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− | از سرود من بگیرد آب و رنگ
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− | زندگی از گرمی ذکر است و بس
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− | حریت از عفت فکر است و بس
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− | چون شود اندیشۂ قومی خراب
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− | ناسرہ گردد بدستش سیم ناب
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− | میرد اندر سینہ اش قلب سلیم
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− | در نگاہ او کج آید مستقیم
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− | بر کران از حرب و ضرب کائنات
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− | چشم او اندر سکون بیند حیات
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− | موج از دریاش کم گردد بلند
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− | گوہر او چون خزف نا ارجمند
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− | پس نخستین بایدش تطہیر فکر
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− | بعد از آن آسان شود تعمیر فکر
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