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− | '''بر مزار حضرت احمد شاہ بابا علیہ الرحمہ'''
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− | تربت آن خسرو روشن ضمیر
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− | از ضمیرش ملتی صورت پذیر
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− | گنبد او را حرم داند سپہر
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− | با فروغ از طوف او سیمای مہر
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− | مثل فاتح آن امیر صف شکن
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− | سکہ ئی زد ھم بہ اقلیم سخن
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− | ملتی را داد ذوق جستجو
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− | قدسیان تسبیح خوان بر خاک او
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− | از دل و دست گہر ریزی کہ داشت
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− | سلطنت ہا برد و بی پروا گذاشت
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− | نکتہ سنج و عارف و شمشیر زن
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− | روح پاکش با من آمد در سخن
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− | گفت می دانم مقام تو کجاست
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− | نغمۂ تو خاکیان را کیمیاست
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− | خشت و سنگ از فیض تو دارای دل
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− | روشن از گفتار تو سینای دل
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− | پیش ما اے آشنای کوی دوست
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− | یک نفس بنشین کہ داری بوی دوست
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− | ایخوش آن کو از خودی آئینہ ساخت
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− | وندر آن آئینہ عالم را شناخت
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− | پیر گردید این زمین و این سپہر
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− | ماہ کور از کور چشمیہای مہر
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− | گرمی ہنگامہ ئی می بایدش
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− | تا نخستین رنگ و بو باز آیدش
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− | بندۂ مومن سرافیلی کند
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− | بانگ او ہر کہنہ را برہم زند
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− | اے ترا حق داد جان ناشکیب
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− | تو ز سر ملک و دین داری نصیب
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− | فاش گو با پور نادر فاش گوی
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− | باطن خود را بہ ظاہر فاش گوی
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